ऐतिहासिक धरोहरो को अपने आंचल मे समेटे है खीरी का सिंगाही कस्बा



लखीमपुर-खीरी। पुरातत्व और पर्यटन स्थल के लिहाज से बेमिसाल ऐतिहासिक स्थल पर आज भी लोगों की पहुंच आसान नहीं है। ऐतिहासिक स्थल के कारण राज्य स्तर पर सिंगाही को पर्यटन का दर्जा मिलने के बाद भी इसे राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन केंद्र नहीं बनाया जा सका है। यहां के रास्ते इतने जर्जर हैं कि एक बार आया व्यक्ति यहां दोबारा आने का नाम नहीं लेता। किसी सांसद या विधायक ने आज तक इसके पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की कोई योजना नहीं बनाई। स्थानीय लोगों का मानना है कि यहां पर्यटन बढ़े तो लोगों को रोजगार मिल सकता है। फिर भी हालात ये हैं कि पर्यटकों के अभाव में यह बेमिसाल धरोहर अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है किंतु इस पर कोई काम हो ही नहीं रहा है। बताते चले कि तराई क्षेत्र मे इंडो-नेपाल बार्डर स्थित यह विधान सभा तमाम ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए है। इसके अंतर्गत आने वाला सिंगाही कस्बा, खीरी की सबसे प्राचीन स्टेट खैरीगढ़ की राजधानी है। दुधवा नेशनल पार्क का अधिकांश जंगल भी इसी साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। नेपाल की तलहटी में बसे नगर पंचायत सिंगाही का राजघराना पहले से ही विख्यात था। इसे टूरिज्म का दर्जा दिए जाने की मांग अर्से से चली आ रही है। मगर विधानसभा उपचुनाव की सुगबुगाहट के बीच सिंगाही को पर्यटन स्थल का दर्जा देकर क्षेत्र वासियों को प्रदेेश सरकार ने सौगात दी थी। नगर पंचायत सिंगाही के वाशिंदों ने सोंचा था कि उपचुनाव के बाद प्रतिनिधि यहां के लोगों का कर्जा उतारने का काम करेंगे पर उप चुनाव बीत जाने के बाद प्रदेश सरकार ने इसे टूरिज्म का दर्जा देकर वापस इस ओर मुड कर तक नही देखा। भूतकाल की इमारतों के खंडहर और बहमनी स्थापत्य कला के अवशेष तथा भील युग की मूर्तियां इसके प्राचीन व ऐतिहासिक होने की गवाही दे चुके हैं। अपनी खासियत की वजह से जो खुद ब खुद देश के मानचित्र पर उभर गए उनको लेकर भी प्रदेश सरकारें उदासीन रहीं। आइए देखते हैं कि आखिर किस हाल में हैं कस्बे की धरोहरें।


’राजमहल’
कस्बा सिंगाही में स्वर्गीय महारानी सूरथ कुमारी ने 1926 में इस राजमहल का निर्माण करवाया था। राजमहल अपनी कला, विशालता एंव सुंदरता के कारण दर्शनीय है। यह राजमहल करीब छह एकड़ में बसा हुआ है। इसमें मंदिर, व कई मूर्तियां भी शामिल है। 15 कमरों वाले महल में ड्राइंगरूम, वेटिंग रूम, आदि शामिल है।

’महारानी की मूर्ति’
राजमहल के ठीक सामने काली मंदिर की तरफ मुंह करके महारानी सूरथ कुमारी की मूर्ति भव्यता का बोध कराती है। यह मूर्ति अष्टधातु की बनी हुई है। इसे इटली से बनवाया गया था।

’काली मंदिर’
महारानी द्वारा बनवाया गया यह काली मंदिर धर्म और आस्था का प्रतीक है। काली मां की मूर्ति के पास सूर्यदेव, चंद्रदेव, भगवान शंकर, काल भैरव, रामजानकी मंदिर आदि मूर्तियां भी लोगों के मन को मोह रही है।

’महाराजा इंद्र विक्रम शाह प्रतिमा’
काली मंदिर के पूर्वी द्वार पर विराजमान महाराजा इंद्र विक्रम शाह की प्रतिमा देखते ही बनती है। अष्टकोणीय आठ खंभों से युक्त इस प्रतिमा को 1984 में स्थापना की गई थी। कुछ साल पहले चोर इनकी तलवार काट ले गए थे।

’तिलस्म व भूलभुलैया’
कस्बे से मात्र एक किलो मीटर की दूरी पर सिंगाही रियासत की महारानी द्वारा सरयू नदी के तिलगवा घाट पर अपने शासन काल के दौरान तिलिस्म भूल भुलय्या का निर्माण 1926 में राज्य के सूबेदार पन्त जी, तिलिस्म भूल भुलय्या व ऊपर शिव मंदिर आज भी बना है। पूरे प्रदेश के दर्शक इस तिलिस्म को देखने आया करते थे यहाँ बने ट्रस्ट की अनदेखी के कारण अब यह तिलिस्म भूल भुलय्या उपेछित हो गया यहाँ के बुजुर्ग लोग बताते हैं की ऐसा ही एक तिलिस्म भूल भुलय्या अवध की राजधानी लखनऊ में बना है।

’ढ़ाई सौ साल से भी ज्यादा पुरानी जामा मस्जिद’
सिंगाही की ढ़ाई सौ साल से भी ज्यादा पुरानी जामा मस्जिद शहर की गंगा जमुनी तहजीब की अलम बरदार है। यह यहां सबसे पुरानी मस्जिद होने का रुतबा रखती है। मस्जिद के एक ओर मुसलिमों की आबादी, तो दूसरी ओर गैर मुस्लिम भी इसे अकीदत की निगाह से देखते हैं। यह कदीम मस्जिद यहां की गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है।

’किले का जंगल’

इस जंगल के मध्य में करीब पाँच हजार साल पहले का इतिहास महत्मा बुद्ध के समय का भी छुपा है। इस जंगल में किला चैकी के पास बना द्वार जो पत्थरों को काटकर बनाया प्रतीत होता है इसको किला गेट का नाम मिला है। गेट के एक पत्थर पर खोद कर लिखी भाषा को गुप्त काल की भाषा मानी जा रही है। किले गेट से मिली हुई दो सौ मीटर लम्बी दीवार जो कि लखौरी ईटों से बनी है जिसका कुछ हिस्सा जमीदोज हो चुका किला गेट भी जर्जर स्थित में पहुंच गया है।


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