पलियाकलां-खीरी। दुधवा नेशनल पार्क में गैंडा पुनर्वास योजना के तहत फेस 2
में 1 नर व तीन मादा गैंडो को सफलता पूर्वक छोड़े जाने से प्रशासन को एक बड़ी सफलता
प्राप्त हुई है।
शुक्रवार को दुधवा परीसर में बने मीटिंग हाल में फील्ड डायरेक्टर सुनील
चैधरी, आसाम से आये बीएस बोनाल, केके शर्मा, अमित शर्मा, अपर प्रमुख वनसंरक्षक एके
द्विवेदी, डिप्टी डायरेक्टर दुधवा महावीर कौजंलगी के द्वारा प्रेस कान्फ्रेंस में
बताया कि एक दशक पहले 19वीं शताब्दी तक उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में एक सींग
वाले गैंडे पाए जाते थे। परंतु इस क्षेत्र में धीरे-धीरे गैंडो का अस्तित्व लगभग
समाप्त हो खत्म हो गया था।
तभी सरकार ने इस तरफ ध्यान देते हुए गैंडों को पुनर्स्थापित करने के
उद्देश्य से 1984 में दुधवा नेशनल पार्क के दक्षिणी सुनारी पुर रेंज के अंतर्गत
विशेषज्ञों की राय के अनुसार नए सिरे से गेंडो को पुनर्स्थापित किए जाने का निर्णय
लिया। जिसमें विशेषज्ञों के अनुसार दो नर तथा तीन मादा गैंडे जो उस समय पश्चिम
बंगाल एवं आसाम राज्य से लाकर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की दक्षिणी सुनारी पुर रेंज
के सलूका पुर परिक्षेत्र में लगभग 27 वर्ग किलोमीटर की फैन्स एरिया में
पुनर्स्थापित किए गए।
गैंडों की संख्या मार्च 2015 की गणना के अनुसार लगभग 32 हो गई थी इसी को
दृष्टिगत रखते हुए वर्तमान में विशेषज्ञों द्वारा यह अनुभव किया गया कि गैंडो को
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में किसी दूसरे स्थान पर भी पुनर्स्थापित किया जाए। जिसका
उद्देश्य पूर्व में स्थापित क्षेत्र में संभावित की इनब्रीडिंग से होने वाले
दुष्प्रभावों को रोका जा सके तथा गैंडो को किसी प्रकार की महामारी के शिकार से
बचाया जा सके।
विशेषज्ञों की राय के अनुसार बेलराया रेंज के भादी ताल क्षेत्र का लगभग
13.5 वर्ग किलोमीटर को गैंडा पुनर्वास के लिए चिन्हित किया गया। उक्त क्षेत्र को
पूरी तरह फैन्स से घेरकर चारों तरफ सुरक्षा खाई खोदी गई। वन विभाग के अधिकारियों
तथा विशेषज्ञों द्वारा लिए गए निर्णय के क्रम में एक नर तथा तीन मादा को बीते
सोमवार से शुक्रवार तक के मध्य सलुका पूर परिक्षेत्र से गैंडो को ट्रेंकुलाइज कर
बेलराया रेंज के भादी ताल क्षेत्र में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया।
द्वितीय गैंडा पुनर्वास क्षेत्र में पुनः स्थापित किए गए गैंडो की
प्रतिदिन देखरेख की जाएगी। उनके व्यवहार आदि की भी जानकारी एकत्र की जाएगी। जिसके
लिए वन विभाग की टीम डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम डब्ल्यूटीआई की टीम गठित की गई है।
जो कि इन गैंडो की एक वर्ष तक निगरानी में राखेंगी। यही नहीं भविष्य में इस
क्षेत्र में गैंडों की संख्या में प्राप्त वृद्धि होने के कारण यह भी विचार किया
जा सकता है कि गैंडो को सुरक्षित फैंस क्षेत्र के बाहर क्षेत्र में स्थानांतरित कर
संपूर्ण क्षेत्र में गैंडो को विचरण हेतु छोड़ दिया जाए। लेकिन यह निर्णय भविष्य
में गैंडों की संख्या में वृद्धि एवं विशेषज्ञों की राय के उपरांत ही लिया जाएगा।
यह अभियान संयुक्त रुप से दुधवा टाइगर रिजर्व एवं डब्ल्यूडब्ल्यूएफ कई माह
से चला रहा था। जिसमें तकनीकी अध्ययन बेहोश करने वाली दवा की व्यवस्था एवं
संसाधनों को एकत्रित किया गया। जिसके उपरांत सोमवार से शुक्रवार तक के बीच फील्ड
डायरेक्टर सुनील चैधरी के निर्देशन में 4 गैंडो को पुनर्स्थापित किया किया गया।
उन्होंने बताया कि इस अभियान के दौरान डब्ल्यूटीआई के विशेषज्ञ ने भी पूर्ण सहयोग
प्रदान किया।
अभियान में विशेष रूप से एनटीसीए के डायरेक्टर व आसाम में काजीरंगा के
डायरेक्टर पद पर रह चुके हैं बीएस बोनाल जो कि ग्लोबल टाइगर फोरम नई दिल्ली को
विशेषज्ञ एवं गैंडा सलाहकार के रूप में दुधवा में आमंत्रित किया गया था।
इनका रहा विशेष सहयोग
उक्त ऑपरेशन में अपर प्रमुख वन संरक्षक एके द्विवेदी, दुधवा टाइगर रिजर्व
के बफर जोन के उपनिदेशक अनिल पटेल, दुधवा टाइगर रिजर्व एवं असम वेटरनरी कॉलेज के
वरिष्ठ प्रोफेसर केके शर्मा, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ आसाम के राइनो कोऑर्डिनेटर अमित
शर्मा, डॉ मुदित गुप्ता, दबीर हसन, पशु चिकित्सक सौरव सिंघई, डॉ परीक्षित,
डब्ल्यूटीआई से डॉ भास्कर चैधरी, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के बायोलॉजिस्ट आशीष बिष्ट,
रोहित रवि, कर्तनिया घाट फाउंडेशन के फजलुर्रहमानए बिलराया के वार्डन विनोद कुमार
यादव, रेंजर अशोक कश्यप का विशेष सहयोग इस रहा।
हाथियो से होगी मानीटरिंग
फील्ड डायरेक्टर सुनील चैधरी ने बताया कि इन चारों गैंडों की मानिटरिंग दो
हाथियों से डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की टीम व वन विभाग की टीम व डब्ल्यूटीआई की टीम के
द्वारा एक साल तक की जाएगी वही।ं उन्होंने बताया कि आगे चलकर यहां पर 2 घंटे और भी
शिफ्ट किए जाएंगे।
पलियाकलां से नवीन अग्रवाल की रिपोर्ट
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