निघासन-खीरी। अब इसे यहां के लोगों की बदकिस्मती कहें या फिर चुनाव के समय
में बडे-बडे नेताओं की वादा खिलाफी। दुर्घटना आदि के दौरान मौत के बाद भी क्षेत्र
के वाशिंदे शव को 60 किलोमीटर दूर पोस्टमार्टम के लिये ढोते हैं।
यहां पोस्टमार्टम हाउस की बिल्डिंग तो लगभग वर्ष 2002 में यानी सोलह साल
पहले ही बना दी गयी थी लेकिन स्वास्थ्य विभाग व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के
चलते इसे अब तक शुरू नहीं किया जा सका हैं। यह जनमानस की समस्या केवल चुनावों में
एक मुद्दें की तरह जिन्न की बोतल से निकलकर सामने जनप्रतिनिधि लाते जरूर हैं
परन्तु चुनाव बाद मे फिर से यह मुद्दा बोतल के अन्दर जाकर आने वाले समय के लिये
बोतल की शोभा बढाता हैं।
हम बात कर रहे जनपद लखीमपुर खीरी की सबसे बड़ी व पुरानी तहसील निघासन की
जहां क्षेत्रीय जनता की कठिनाइयों को देखते हुए करीब सोलह साल पहले सिंगाही रोड
स्थिति नहर के पास शव पोस्टमार्टम के लिये भवन का निर्माण कराया गया था लेकिन
सरकार व जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते आज तक यह चालू नहीं हो पाया। जिस कारण
शवों को पोस्टमार्टम के लिये जिला मुख्यालय ले जाना पडता हैं जिससे क्षेत्र के
लोगों को काफी परेशानियां उठानी पडती हैं।
ज्यादा समय लग जाने से शवों की दुर्दशा खराब हो जाती हैं। गरीब वर्ग के
बहुत से लोग इस हालत में नहीं होते हैं कि वह शव को अपने किराए पर वापस अपने घर
लाकर उसका विधिवत अंतिम संस्कार कर सके इसलिए वह लखीमपुर के निकट में ही उल्ल नदी
में शव डाल आते हैं। यदि निघासन में पोस्टमार्टम हाउस शुरु हो जायें तो कम से कम
ऐसे लोगों के मरने के बाद अपने गांव की दो गज जमीन तो नसीब हो सकेगी।
प्रदेश से लेकर केंद्र में हुकूमतें आयी और गयी, यहां के पूर्व
जनप्रतिनिधि हो या वर्तमान के सभी ने अपने-अपने चुनाव के दौरान पीएम हाउस शुरू
कराने का बराबर वादा करते चले आ रहे हैं लेकिन वह दिन आज तक नहीं आया जब
पोस्टमार्टम हाउस के शुरु होने की एक आशा की किरण दिखाई दी हो।
निघासन विधानसभा में कई वर्षो बाद प्रदेश व केंद्र सरकार के जनप्रतिनिधि
भी क्षेत्रीय व भाजपा से हैं इनसे क्षेत्रीय लोगों को काफी उम्मीदे हैं। अब देखना
यह है कि वे लोगों की समस्याओं पर कितना खरें उतरते हैं। नतीजा यह है कि
पोस्टमार्टम हाउस के लिये बना यह भवन बेकार पडा है और धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील
होता जा रहा हैं।
निघासन से विनोद गुप्ता की रिपोर्ट
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