गोला गोकर्णनाथ-खीरी। मन के संताप को दो प्रकार से दूर किया जा सकता है.
आंखों से और पैरों से। आंखों से प्रभू का दिव्य दर्शन करो और पैरों से उनकी
परिक्रमा करो। उक्त सद्वचन स्वामी ज्ञानानंद तीर्थ युवाचार्य मठ
भानपुरा.मध्यप्रदेश ने व्यक्त किये।
कंजा ग्राम स्थित देवस्थान हनुमान मंदिर पर बने स्वामी विश्वात्मानंद
सत्संग हाल में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के प्रथम दिन स्वामी ज्ञानानंद जी ने
बताया कि जब भगवान विष्णु ने बृम्हा जी से ये कथा कही थी तब इसमें केवल चार श्लोक
थे लेकिन जब शुकदेव जी ने कथा कही तब तक इसमें 18000 श्लोक हो चुके थे।
उन्होने ज्ञान की पांच धाराओं का वर्णन करते हुए कहा कि पहली धारा वाणी
कर्मेन्द्रिय है जब कि कान के रूप में ज्ञानेन्द्रिय दूसरी धारा है। उन्होंने राम
चरित मानस की चैपाई दैहिक दैविक भौतिक तापा की व्याख्या करते हुए कहा कि शरीर से
प्राप्त दुख, दैहिक, देवताओं से प्राप्त दुख दैविक और इस भौतिक जगत से व्याप्त
दुखों को भौतिक ताप कहते हैं और यह तीनों ताप आध्यात्मिक ताप के तपाने से स्वंयमेव
ही दूर हो जाते है।
कथा में स्वामी जी ने साधु शब्द की व्याख्या करते हुए चिंता न कर चिंतन
करने की सलाह दी कहा कि चिंता से समस्या बढ़ेगी जब कि प्रभु स्मरण व चिंतन से
समस्या हल होगी। उनके साथ स्वामी विश्वात्मानंद स्वामी कृष्णानंद, स्वामी केशवानंद
आदि भी उपस्थित रहे। कथा के अंत में प्रमुख यजमान राधा, राजेश गुप्ता, सेवादार
अवधेश जायसवाल समेत भक्तों ने आरती उतारी।
गोला गोकर्णनाथ से श्याम मोहन शुक्ला की रिपोर्ट
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