हिन्दी हिन्दुस्तानियो की जान : हिन्दी दिवस पर विशेष


 
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लखीमपुर-खीरी। मेरे भारत के सपूतों, जरा तो सोचो। अपनी भाषा की तरफ यूं आंखें न मीचों। अंग्रेजी तुम्हारे जरूर काम आएगी, पर अपनी भाषा तो ममता लुटाएगी...। किसी के द्वारा कही गई यह पंक्तियां हिंदी की उपेक्षा करने वाले उन हिंदुस्तानियों के लिए हैं, जो हिंदी दिवस मनाते तो हैं, पर हिंदी दिवस की जगह हिंदी डे कहना ही उचित समझते हैं।

इसे हिंदी का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आज भी हिंदी स्कूलों-कॉलेजों के चहारदीवारी में घुटती नजर आती है। हर 14 सितंबर की भांति ही अबकी भी सम्पूर्ण जनपद मे हिंदी दिवस धूमधाम से मनाया गया। इसी क्रम मे जनपद के सिंगाही कस्बे मे स्थित सिंटी पब्लिक स्कूल, राजा प्रताप विक्रम शाह इंटर कालेज से लेकर कई स्कूलों में इसको लेकर कई कार्यक्रम आयोजित हुए। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच शुद्ध हिंदी में कविता, हिंदी को लेकर व्याख्यान व परिचर्चाएं हुईं।

हर बार की तरह ही अबकी भी पूरी तरह से यही माहौल देखने को मिला कि हर जगह हिंदी ही हिंदी, पर दिन गया और हिंदी को देश का गौरव कहने वाले ही हिंदी को भूल अंग्रेजी का सहारा लेते दिखाई पडे। जानकारों का कहना है कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या है भाषायी एकता बचाकर रखना, जब तक हिंदी को प्रमुखता से हर जगह सामने नहीं लाया जाएगा, तब तक राष्ट्रभाषा को उतना सम्मान नहीं मिल पाएगा, जितना अपेक्षित है।

 राजा प्रताप विक्रम शाह इंटर कालेज के प्रधानाचार्य मोहयुददीन अंसारी ने कहा कि हिंदी जब तक वजूद में नहीं आएगी, जब तक हम उसको अपने प्रयोग में पूरी तरह से लाना नहीं शुरू करेंगे। हम सब हिंदी दिवस तो मनाते है पर जरा सोचिए किस बात पर इतना इतरा रहे हैं। उधर, इससे अधिक विडंबना हिंदी के लिए और क्या होगी कि क्षेत्र भर में रविवार 14 सितंबर को हिंदी दिवस को लेकर शनिवार से ही बधाइयों का दौर शुरू हो गया।

 हिंदी को आगे ले जाने के लिए संदेश दिए गए, लेकिन हैरानी की बात यह है कि जो मोबाइल हिंदी सपोर्ट नहीं करता है, उसके मोबाइल पर मैसेज पहुंचा ही नहीं। इसके अलावा जिन मोबाइलों पर पहुंचा उनमें अधिकांश स्वयं अंग्रेजी में ही लिखे थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिंदी के लिए इससे ज्यादा विडंबना क्या होगी।

हिंदी में काम करने पर दें जोर....
पण्डित उमां शंकर शुक्ला ने कहा कि राष्ट्र भाषा हिंदी पर विचार करने से पहले हमें महात्मा गांधी के राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति विचारों को आत्मसात कर लेना चाहिए। गांधीजी ने कहा था कि अंग्रेजी से हमारी मातृभाषा चाहे कम संपन्न हो, पर हमारे लिए वह महत्वपूर्ण है। किसी भी भाषा का भविष्य उसके वर्तमान पर ही निर्भर होता है, इसलिए हिंदी मेें कामकाज करने पर जोर देना चाहिए।

उफ ! अब तो शासनादेश भी अंग्रेजी में......
अब शायद ही ऐसा कोई विभाग हो जहां के निदेशालय द्वारा यदि कोई शासनादेश जारी किए जा रहे हैं, तो वह भी यदा कदा हिंदी में दिखाई देते हैं, बाकी शासनादेश अंग्रेजी में ही पढ़ने को मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय वेबसाइटों पर प्रदेश के डीएम को भेजे जाने वाले शासनादेशों में भी हिंदी नहीं, बल्कि अंग्रेजी का ही प्रयोग होता दिखाई देता है मनरेगा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

लखीमपुर-खीरी के सिंगाही से मसरुर खान की रिपोर्ट

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