लखीमपुर-खीरी। हिमालय की तलहटी में बसी
छोटी काशी गोला गोकर्णनाथ का धार्मिक विख्यात जग जाहिर है। गोला मे शिव मन्दिर की स्थापना
के साथ बाबा भूतनाथ की स्थापना हुई थी और शिवजी की पूजा के साथ बाबा भूतनाथ की पूजा
व मेंला का विशेष महत्व है।
पौराणिक-प्राचीन और ऐतिहासिक यह स्थल
जो कि भक्तों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। सावन माह में नागपंचमी के बाद पड़ने वाले
सोमवार को बाबा भूतनाथ का विशाल मेंला लगता है। इस मौके पर पुलिस की भारी सुरक्षा व्यवस्था
आस्थावानों की आस्था के आगे बिखर सी जाती है। बताते है कि आदिकाल में लंकापति रावण
को कैलाश पर्वत पर घोर तप के बाद शिवजी से मिले वरदान से अंहकार हो गया था। अंहकार
से मदहोश रावण शिवजी को आकाशीय मार्ग से लंका ले जा रहा था।
तभी गोला गोकर्णनाथ नगर मे शिवजी के बसने व लंकापति
रावण के अंहकार को चूर होने की कहानी भी जगजाहिर है। धार्मिक ग्रन्थों व गजेटियर में
बाबा भूतनाथ मेंला का उल्लेख पाया जाता है। शिवजी की मनोइच्छा पूरी होने के चलते जिस
ग्वाला(चरवाहे) की जान गई थी उसे भगवान शिव ने अपने नाम से नाम देकर कहा कि सावन माह
में पड़ने वाले नागपंचमी के बाद जो सोमवार पड़ेगा उस दिन बाबा भूतनाथ नाम से मेंला लगेगा
जो भक्त मेंरी पूजा के साथ बाबा भूतनाथ की पूजा करेगा तभी उसकी पूजा पूरी होगी।
शिवजी के वरदान से ग्वाला (चरवाहा)बाबा भूतनाथ बना
और तब से भक्तों का सैलाब उमड़ता चला आ रहा है। जिस कुएं में रावण के कोप का शिकार होकर
ग्वाला(चरवाहे)ने कूद कर अपने प्राणों का बलिदान दिया था उस कुआ पर पूजा अर्चना के
बाद भक्त हू-हू की आवाज निकालते है। उनका मानना है कि इस कुंआ में ग्वाला ने बलिदान
देकर भूत बना शिवजी ने अपने नाम से नाथ का नाम दिया जिससे वह भूतनाथ बना इसमें हू-हू
की आवाज लगाने से किसी प्रकार की कोई भूत बाधा की समस्या नही आती है और मन्दिर में
जाकर बाबा की पूजा अर्चना करने से धन्य-पुण्य का लाभ उठाते है।
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