लखीमपुर-खीरी।
सरकार भले
ही सर्व शिक्षा
अभियान में
करोड़ों रुपये
खर्च कर
रही हो
लेकिन धरातल
पर इसका लाभ
परिषदीय स्कूलों
में पढ़ने
वाले बच्चों
को नहीं मिल
पा रहा है।
बच्चो को
मिलने वाली
सरकारी ड्रेस
जिले में
मोटे कमीशन
की भेंट चढ़
गई है। बच्चों
को रेडीमेड ड्रेस
बांटकर शिक्षक
और शिक्षा अधिकारी
अपने कर्तव्यो
की इतिश्री कर
रहे हैं।
भ्रष्टाचार
की सीमा लांघ
रहे बेसिक
शिक्षा विभाग
में सरकार
की शिक्षा सम्बन्धी
जितनी भी
योजनाएं हैं
वह मोटे कमीशन
की भेंट चढ़ी
हुई है।
विभाग के
बाहर दलालों
का हर समय
जमावड़ा देखा
जा सकता है।
बच्चो को
निःशुल्क बांटी
जाने वाली
किताबों के
बाद अब
महकमे में
ड्रेस के
लिए करीब
पांच करोड़
से अधिक का
बजट आया
है। इस
सम्बन्ध मे
विभाग को
३० अक्तूबर तक
ड्रेस बांटने
के निर्देश भी
जारी किये
गए हैं जिनका
अनुपालन होता
नही दिखायी
दे रहा है।
बेसिक शिक्षा
विभाग के
अधिकारी गांधी
छाप नोटो
की पट्टी अपनी
आंखो पर
बांधे करोड़ों
रुपये के
ड्रेस कोड
वितरण मामले
में कान
मे तेल डाले
बैठे हैं।
शासनादेश के
मुताबिक परिषदीय
स्कूलों में
बच्चों को
रेडीमेड ड्रेस
की जगह दर्जी
द्वारा सिली
हुई ड्रेसों
का वितरण होना
चाहिये लेकिन
विभाग ने
इस आदेश को
दरकिनार कर
दिया इसकी
जगह पर
दलालो के
चहेतो की
दुकानो से
आयी ड्रेसे
बच्चो मे
बांटी जा
रही है
और अपनी खाऊ
कमाऊ नीति
के चलते शिक्षा
विभाग कुम्भकर्णी
नींद सोने
मे मस्त है।
परिषदीय
स्कूलो मेे
बच्चों को
घटिया क्वालिटी
की ड्रेसों का
वितरण बहुत
तेजी से
हो रहा है
जबकि शासन
द्वारा यह आदेश
दिया गया
है कि इस
बार बच्चों
को दर्जी से
सिलवाकर ड्रेस
बांटी जानी
चाहिए जिससे
ड्रेस की
गुणवत्ता भी
सुधरेगी और
बच्चो को
कपड़े भी
फिट आएंगे।
इस आदेश के
अनुसार डीएम
की ओर से
यूनिफार्म सिलने
वाले दर्जी
का नाम भी
बताने की
व्यवस्था दी
गई है जिसकी
जिम्मेदारी प्रधानाध्यापकों
को सौंपी गई
थी अलबत्ता इस
व्यवस्था का
पालन नहीं
हो रहा। तमाम
स्कूलों में
ठेकेदार ही
रेडीमेड यूनिफार्म
बांट रहे
हैं और
भ्रष्टाचार मे
आकंठ डूबे
बेसिक शिक्षा
विभाग के
कान पर
जूं तक
नही रेंग
रही है।
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