लखीमपुर-खीरी।
बकरा ईद
आते ही
शहरों और
कस्बों की
बाजारों में
कपड़ा होजरी
फुटवियर और
सेवईं की
दुकानों में
खरीददारों की
खूब भीड़
उमड़ रही
है। किसी
जमाने में
ईद जैसे मौकों
पर शेरवानी शान
होती थी
लेकिन बदलते
जमाने में
शेरवानी के
कद्रदान ढूंढे
नहीं मिल
रहे हैं।
नतीजन शेरवानी
की मांग दिन
पर दिन कम
होती जा
रही है।
वर्षों
पहले ईद
के मौके पर
शेरवानी में
सजे धजे
लोगों का
दिखना आम
बात थी।
इस मौके पर
लगभग ८०
फीसदी लोग
शेरवानी पहनते
थे लेकिन अब
फैशन के
दौर में
ईद के मौके
पर शेरवानी पहनना
खत्म सा
हो गया है।
पैंट शर्ट
की धूम ने
शेरवानी को
काफी कम
कर दिया है।
शेरवानी के
कद्रदानों की
कमी के
पीछे उसकी
महंगी सिलाई
एक बड़ी वजह
है।
शेरवानी
के शौकीन मोनू
सगीर चून्ना
और राशिद गौरी
बताते हैं
कि शो के
लिए करीब
दो हजार रूपये
की कीमत चुकानी
पड़ती है।
शेरवानी सिलने
वाले कारीगर
भी अब ज्यादा
नहीं रहे।
क्षेत्र में
मुश्किल से
बहुत कम
लोग ही
इसे सिलने
का हुनर रखते
हैं। ईद
की खरीददारी के
बदलते फैशन
का फायदा उठाने
में दुकानदार
भी नही चूक
रहे हैं।
कपड़े और
दर्जियों की
दुकानों में
ग्राहकों का
खासा दबाव
है। युवा
तबका ट्राउजर्स
पैंट पर
जान दे
रहा है।
युवाओं
का कहना है
कि इस समय
जितनी एक
शेरवानी की
सिलाई पड़
रही है
उतने में
लगभग दो
जोड़ी पैंट
शर्ट तैयार
हो जाते हैं।
पैंट शर्ट
का लुक भी
शेरवानी से
कम अच्छा नहीं
लगता है।
एक शेरवानी की
सिलाई लगभग
दो हजार रुपये
पड़ती है,
जबकि एक
पैंट शर्ट
की सिलाई तीन
सौ रुपये से
लेकर पांच
सौ रुपये लग
रही है।
Post a Comment