सच्चे फ़कीर मस्तान मियां साहब की पुण्यतिथि पर विशेष

लखीमपुर-खीरी। ‘‘गुरू करउ जानि के, पानी पियोै छानि कै‘‘ यह कथन उस फकीर का है जिसे भारत वर्ष मियां साहब के नाम से जानता था। विगत वर्ष आज ही के दिन लखीमुपर की बस्ती उस समय वीरान हो गयी थी जब बस्ती की परिभाषा बताने वाला बस्ती का निजाम अपने निजी मुकाम यानी ख्ुादा के दरबार पर चला गया था, जहांॅ से अब वह कभी भी वापस नहीं आयेगा अगर कुछ बाकी रह गया तो उनकी यादों का मेला, जैसे कभी कभार मियां साहब कहा करते थे कि बस्ती तो उस जगह को कहते है, जहां पर लोग बसते है और पिछले साल आज ही के दिन उन्होनें उस बस्ती का त्याग कर दिया था। बताते चलें कि मियां साहब पड़ोसी जनपद सीतापुर के हरगांव क्षेत्र के मूल निवासी थे जिनका पूरा नाम सैय्यद इसरारूल हक उर्फ मस्तान मियांॅ उर्फ मियांॅ साहब था, वह सभी धर्म के अनुयाइयों पर अपना स्नेह बरसाते थे। कई लोगों ने उनसे यह प्रार्थना की थी कि वह उन लोगों को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लें, परन्तु मियांॅ साहब अपने हर भक्त को यह कहकर टाल देते थे कि ‘‘गुरू करउ जानि के, पानी पियोै छानि के इससे कबहूॅं धोखा नाय खैहोेै।‘‘ कभी ईदगाह तो कभी निघासन ढाल तो कभी हाथीपुर कोठार, कभी दिल्ली, कभी लखनऊ, कभी बम्बई और पूरी दुनिया का चक्कर मारते रहने वाले मियाॅं साहब ने आज ही के दिन परदा किया था। ठेठ गांजरी भाषा बोलने वाले तथा बात-बात में गाली निकालने वाले वयो वृद्ध संत मियांॅ साहब के भक्तों की संख्या तो लाखों में है लेकिन उन्होनें जीवन काल में कभी किसी से एक नये पैसे का चढ़ावा नहीं लिया, और न ही कभी किसी से भी किसी भी चीज की दरकार ही की। वह हमेशा लोगों को दुआयें देते रहते थे। उनकी दुआओं में इतना असर था कि परवरदिगार भी उनकी बात नही काटते थे। मियांॅ साहब के भक्तों मे केन्द्र व प्रदेश के बड़े-बड़े राजनीतिक दलों के बड़े-बडे़ नेता तथा उच्च पदासीन देश के अधिकारियों के नाम शामिल है। मियाॅं साहब को कई भाषाओं का ज्ञान था तथा ताजियादारों एवं ताजिया बनाने वालों के साथ ताबीज, झण्डा, तथा अन्य किसी भी प्रकार की झाड़ फूंक इस महान मियांॅं को मात्र ढोग एवं ढगी करने का एक तरीका मात्र लगता था जिससे क्षुब्ध होकर मियाॅं साहब ने अपने मुकाम पर यह इबादत लिखवाकर टंगवा दी थी कि ‘‘ इस स्थान पर न तो कोई गन्दा ताबीज बनाया जाता है और न ही झाड़ फूंक किये जाने के लिए कोई पेैसा ही लिया जाता है’’ यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसका कोई कार्य भी नहीं बनेगा बल्कि उसकी परेशानी और बढ़ जायेगी। इस प्रकार मियांॅ साहब अपने स्वर्गवास के बाद कुछ भी ऐसा नहीे छोड़ गये थे जिसकों लेकर उनके उत्तराधिकारियों ने मतभेद पैदा हो। मियां साहब औरतों से कभी नहीं मिलते थे और हमेशा औरतो से परदा रखते थे। वह किसी जाति पाति अथवा धर्म सम्प्रदाय पर ध्यान नहीं रखते थे उनके लिए सभी इंसान एक समान थे। मियांॅं साहब के दरवाजे छोटे, बड़े, अमीर व गरीब सब के लिये सदैव खुले रहते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है हम सभी ने प्रेम के वशीभूत होकर उनके अनेकों नाम रखे हुए है तथा अपनी इच्छानुसार उनकों प्रसाद ग्रहण कराते हुए उनकी पूजा अर्चना करते है। एक वाकए के अनुसार रात के समय जब मिया साहब ईदगाह में रहा करते थे, तब तत्कालीन जनपदीय एडीएम हरिओंम लावनियां के साथ कई बुद्धिजीवी उनके पास बैठे हुए थे तभी उन्होनें अपने एक साधू को आवाज लगाते हुए पूंछा कि क्या रोटी बन गयी, जवाब मिला हाॅ, मियां साहब बोले लावत काहे नाय होै, मियांॅ साहब के तेज तर्रार आक्रोषित आदेश को सुनकर वह खिदमदगार मियां साहब के पास एक पतीली में सब्जी और गमछे में लिपटी रोटियां लेकर पहुंचा और उन्हें धीरे से जानकारी दी कि हुजूर रोटी चारिन है खाय वाले ढेर है, कैसे निपटी? इस पर मियांॅ साहब ने अपने खिदमदगार को यह कहते हुए भगा दिया कि साले तुम तौ गाली खाय रहे हौ तो और लोगन का रोटी खाय देउ भागो यहां से और उसको वहां से भगा दिया। उक्त पतीली जिसमंे भिण्डी की सब्जी थी तथा गमछे मंे लिपटी चार रोटियांें को मिया साहब ने पता नहीं किस तरह से श्रृद्धा से आये 20-25 लोगों मे बड़े आराम से आधी-आधी रोटी सामान रूप से सबको बांटी और फिर भी रोटियां बच गयी, जिन्हें मियां साहब ने अपने खिदमदगार को बुलाकर वापस कर दिया और कहा कि एक रोटी तुम खा लो तथा एक रख देना पता नहीं और अभी कितने लोग आ जायें। इसी प्रकार मियांॅ साहब के जीवन को यदि रहस्य मयी व्यक्तित्व रखने वाला फकीर माना जायें, जो दुनियां को तो देता है परन्तु दुनियां से और कोई नाता रिश्ता नहीं रखता तो अतिश्योक्ति नही होगी इसीलिये इस प्रकार के लोग ‘‘मस्तान की उपाधि से सम्मानित किये जाते हेै ’’ इसी श्रेणी में शिरडी के संाईनाथ बाबा का नाम भी प्रातः स्मरणीय है।

2 تعليقات

  1. यह बिलकुल सच है।

    ردحذف
  2. इश्वर एक ही है। क्योंकि मैंने सच में देखा है। हम जिस भाव से देखते हैं। वो उसी रूप में ही दिखता है । मेरे आस पास हमेशा खुशबू फैली रहती है। चाहे मैं जहाँ भी रहूँ। मुझे सपने में दिखायी देते हैं और बाते भी करते हैं।
    सब एक ही हैं। बस इन्सान ही जानवर बना पड़ा है ।

    ردحذف

إرسال تعليق

أحدث أقدم